मनका
क्यों इतनी बातें करते हो
तन्हाइयों में ही सबसे ज्यादा छेड़ते हो
कभी अतीत में ले जाकर
होठों पर मुस्कान सजाते हो
कभी भविष्य के झूठे डरावने स्वप्न
दिखा कर नींद आँखों से चुरा ले जाते हो ।
दोष तुझे नहीं दे पाते
परिपक्व सोच आज भी नहीं है
शायद यही समझाने तुम आ जाते हो ।
ना आज चिंता में गंवाओ
ना बीते कल की बेवकूफियों की
हंसी उड़ाओ ।
सृष्टि का नियम है परिवर्तन
इसे सहजता से ही तुम स्वीकारो ।
आत्मविश्वास की कूंजी है आत्मसंतुष्टि
इसे पल पल बढाते जाओ ।
आज और कल के बीच के सेतू हो तुम
अपने मन को सुकून कैसे मिलता
बस इतना ही ध्यान लगाओ
समाधिस्थ होगा यह मन स्वयं ही
सुमिरन माला जपते जाओ ।
— आरती रॉय