ग़ज़ल
ज़रा सी पलकें उठाओ, बड़ा अँधेरा है
नज़र की शम्अ जलाओ, बड़ा अँधेरा है
दिखाई देते नहीं हैं मुहब्बतों के समर
शजर पे चाँद उगाओ, बड़ा अँधेरा है
अमा की रात है, सुनसान हैं सभी राहें
कि जुगनुओं को बुलाओ, बड़ा अँधेरा है
न कोई ख़त ही मिला अब तलक, न आये वो
शगुन मिलन का बनाओ, बड़ा अँधेरा है
बुझा-बुझा है ये दिल और उदास आँखें हैं
पलक पे ख़्वाब सजाओ , बड़ा अँधेरा है
ख़मोश हैं ये फ़िज़ायें, कि मन भी बोझिल है
सुख़नवरों को बुलाओ, बड़ा अँधेरा है
— पूनम माटिया