कविता

कद्र करो जी

कद्र करने चाहिए हमें हर उस थाली की,
जिसके एक समय न मिलने पर
हम तिलमिला उठते हैं,
भूख से बिलबिला उठते हैं,
उस थाली में रखी रोटी
सुखी,छोटी या ताजी,
पेट की क्षुधा होने पर
खाने को हो जाते हैं राजी,
मिले चावल की बासी
या फिर ताजा भात,
खाना ही है तब रहता याद
भूल बैठते हैं अकड़ जगाती जात,
अन्न के चार दाने भी
बस तृप्ति दायक लगता है,
पेट हो खाली तो भूखा
सोता कहां बस जगता है,
चार दाना बस चार दाना,
मिले तो रोता गाये गाना,
कोई चीज पास न होने पर ही
लोग उसकी कदर करते हैं,
हमने देखे हैं इतिहास में
भूखे लोग ही ग़दर करते हैं,
तो कद्र करना जरूरी है
हमें हर उस थाली का,
जो बना है,मिला है किसी के
महीनों की अथक मेहनत के बाद,
रखो याद,रखो याद।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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