कुण्डली/छंद

डरावना है मंजर

डरावना है मंजर घातक, चहुँ दिशि धधके आग।

गोले बरसाते शत्रु दिखे, जलते कई चिराग।।

बच्चे, बूढे, कितने घायल, पीड़ा, दुख चित्कार।

प्रेम पगी निज बगिया उजडी, हिंसा हाहाकार।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८

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