कविता

यही है प्रेम

चातक का स्वाति नक्षत्र की बूॅंद की तलाश से,
रात में पतंगे का दीपक की लौ के प्रकाश से,
भंवरों का भोर की पहली किरण के इंतजार से,
तितलियों का उपवन में छाई चटक बहार से,
अनवरत अनंत अशेष “आनंद” प्रवाह यही है प्रेम

सूरजमुखी का प्रभाकर के उतार चढ़ाव से,
नदी का सिंधु की ओर उठते गिरते बहाव से,
कृषकों का खेतों में महकती सौंधी मिट्टी से,
सीमा पर सैनिकों का घर की आई चिट्ठी से,
अनवरत अनंत अशेष “आनंद” प्रवाह यही है प्रेम

अविभावकों का बच्चे की तुतलाती बोली से,
पति का अर्द्धांगिनी की सजी मॉंग की रोली से,
कानों में घुलती पायल, चुड़ियों की खनक से,
वर्षों बाद घर लौटे बच्चों की आने की भनक से,
अनवरत अनंत अशेष “आनंद” प्रवाह यही है प्रेम

बिछड़े यारों की पुरानी खट्टी मिट्ठी सी मित्रता से,
शिष्य का गुरु उपदेशों के प्रति सात्विक शिष्टता से,
ॐ कार की प्रतिध्वनि के अन्तर्मन में बढ़ते गुंजार से,
इष्ट को समर्पित हुए भक्त की हृदय करुण पुकार से,
अनवरत अनंत अशेष “आनंद” प्रवाह यही है प्रेम

— मोनिका डागा  “आनंद”

मोनिका डागा 'आनंद'

चेन्नई, तमिलनाडु

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