कविता
इन पहाड़ों की वादियों को
झरोखों से देखो जरा
झूम जायेगा ये मन
इन मस्त हवाओं के फिजाओं में
जब झरने झरते है झर झर
नदिया बहती है कल कल
इन पर्वतों को क्या कहने
अपनी मस्ती में झूमते
मानो छू रहे है गगन
बिन बादलो के बरसात है ऐसे
जैसे स्वर्ग की अप्सरावो जैसे
प्रकृति ने मोह लिया जीवन
मन झूम उठा है देखकर
सूरज ने लाली लिए हुए
कर रहे दिन की शुरुआत
नई उमंग नई तरंग में
कर रहे सब मिल स्वागतम।
— विजया लक्ष्मी