उपन्यास अंश

उपन्यास : देवल देवी (कड़ी 40)

36. रामदेव, शाही हरम में

सुल्तान अलाउद्दीन की पुत्री और अपने पुत्र के निकाह के जलसे में दो घोषणाएँ करता है। पहली- वह बहुत जल्द गुर्जर राजकुमारी देवल देवी और शहजादे खिज्र खाँ का निकाह करवाएगा। दूसरी- उसने देवगिरी के पराजित राजा रामदेव को अपना मित्र कहा और ‘रायरायन’ की उपाधि से सम्मानित किया। राजा रामदेव, सुल्तान की इस इज्जत अफजाई से गद्गद् होकर बोला ”हे राजाओं के राजा, दिल्लीश्वर आपके इस सम्मान के बदले में हम आपको क्या देंगे। आप बस ये समझ लीजिए कि समस्त देवगिरी सदा आपकी आज्ञा मानेगा। हे सुल्तान, आपको दक्षिण अभियान के समय आपका यह मित्र आपकी पूर्ण सहायता का वचन देता है।“

”राजा रामदेव, हम सल्तनत के प्रति तुम्हारी वफादारी देखकर बहुत प्रसन्न हैं, इसलिए अबसे तुम शाही हरम में रहोगे, सल्तनत के नायब के साथ आप हरम में जा सकते हैं।“

राजा रामदेव सुल्तान को धन्यवाद देकर नायब मलिक काफूर के साथ हरम में आया। शाही हरम में जगह-जगह पर सुंदर सरोवर बनाए गए थे जिनमें अप्सराओं सी कन्याएँ अर्धनग्न अवस्था में स्नान कर रही थी। कहीं-कहीं पर सुल्तान के शहजादे और संबंधी उनके अंगों का मर्दन कर रहे थे। मलिक काफूर उन सरोवर में नहाती हुई युवतियों को राजा को दिखाकर बोला, ”राजाजी यह सब खूबसूरत लौंडिया सुल्तान की सेवा में मालवा, भिलसा, अन्हिलवाड़ और देवगिरी से विजयस्वरूप लाई गई हैं।“

काफूर की बात सुनकर आखें नीची करके राजा मौन रह गया। अब काफूर राजा को कक्ष दिखाता ओर फिर उस कक्ष में रह रही सुल्तान या सुल्तान के संबंधियों की बेगमों या रखैलों का विवरण बताता। ऐसे ही एक कक्ष के सामने रुककर काफूर बोला, ”राजा रामदेव, यह कक्ष देवगिरी से संधि स्वरूप प्राप्त की गई राजकुमारी चंद्रिमा का कक्ष है। राजकुमारी चंद्रिमा, सुल्तान-ए-आला की खास बेगमों में से एक हैं और सुल्तान-ए-आला ने राजकुमारी की खिदमत से खुश होकर उन्हें गुलमहल के खिताब से नवाजा है।“

कक्ष के अंदर अपनी पुत्री के होने की बात सुनकर राजा रामदेव उसे एक आँख भर देखने को बेचैन हो उठे। उनकी प्रार्थना पर काफूर ने उन्हें कक्ष में यह कहते हुए जाने की अनुमति दी ”राजा जी, देखिए कक्ष में ज्यादा वक्त मत लगाना, क्योंकि बेगम को सुल्तान की खिदमत में जाने के लिए हर वक्त तैयार रहना पड़ता है। आपकी वजह से इसमें कोई रुकावट पैदा न हो।“

राजदेव जब अपनी बेटी के कक्ष में आया तो कुछ पुरुष उसके अंगों में सुगंधित तेल और लेप लगा रहे थे। कुछ उसके केश संवार रहे थे और कुछ उसे वस्त्र पहना रहे थे। उन पुरुषों में से कुछ को राजा ने पहचान लिया और कुछ ने राजा को पहचान लिया। उत्तेजित होकर राजा आगे बढ़ा और उसने एक गुलाम की ग्रीवा पकड़ ली, गुलाम पीड़ा से छटपटाने लगा। उसकी आँखें उबल पड़ी तभी काफूर ने आगे बढ़ कर उस गुलाम को राजा की पकड़ से स्वतंत्र कराया। वह भय से कक्ष के एक कोने में जाकर दुबक गए, अन्य भी भय से इधर-उधर जाकर खड़े हो गए।

गुलमहल (राजा की पुत्री राजकुमारी चंद्रिमा) भी कक्ष में अपने पिता को देखकर अवाक खड़ी रह गई। राजा भावावेश में आगे बढ़ा और उसने अपनी पुत्री को गले लगा लिया। राजकुमारी चंद्रिमा भी अपने पिता के कंठ से लगकर सुबुक पड़ी उसके अश्रु आँखों से निकलकर उसके कपोलों पर ढुलकने लगे। राजा बोला, ”पुत्री, ये नीच जाति मनुष्य जो तुझे देख भी नहीं सकते थे वह तेरे अंगों का मर्दन कर रहे हैं, तेरे शरीर को सहला रहे हैं।“ राजकुमारी केवल ‘पिताजी’ कहकर फिर रोने-सिसकने लगी।

गुलमहल और राजा को यूँ एक-दूसरे को कंठ से लगाए देखकर नायब तनिक कड़ककर बोला, ”राजा जी, बेगम हुजूर को यूँ गले से लगाना अपराध समझा जाएगा। अब यह आपकी पुत्री राजकुमारी चंद्रिमा नहीं बल्कि शाही हरम की बेगम गुलमहल हैं।“

नायब मलिक काफूर का आदेश सुनकर पिता और पुत्री एक-दूसरे से अलग होकर चुपचाप खड़े हो जाते हैं।

नायब मलिक काफूर फिर बोलता है, ”महाराज शाही हरम के गुलाम पर आपका यूँ हमला भी गुनाह माना जा सकता है। आप खुद को काबू में रखें।“

”पर वजीरेआला आपने देखा नहीं यह गुलाम कैसे मेरी पुत्री की देह को स्पर्श कर रहे थे।“

”यह गुलाम सिर्फ बेगम के शरीर को उनके श्रृंगार के लिए स्पर्श करते हैं, इससे अधिक यह कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि इनके पुरुषांग काट दिए गए हैं।“

राजा अभी कुछ बोलना ही चाहता है कि कक्ष में एक दासी प्रवेश करके कहती है, ‘बेगम, हुजूर आपको सुल्तानेआला ने याद फरमाया है।’

दासी की बात सुनकर काफूर बोला, ”महाराज आओ अब यहाँ से चलें आपकी पुत्री को अब सुल्तान की सेवा में हाजिर होना है। राजा विवशता से अपनी पुत्री को देखकर कक्ष से बाहर निकलता है और उस वक्त राजा के कानों में राजकुमारी के बिलखने की आवाज पड़ती है पर वह कक्ष से बाहर आ जाता है।“

इसके उपरांत काफूर, राजा रामदेव को कुछ अन्य खास हरम में ले जाता है, वहाँ भी संभ्रात हिंदू परिवारों की राजकुमारियों का मान-मर्दन इन्हीं तरीकों से किया जा रहा होता है। फिर काफूर राजा को उसके शयनागार में छोड़ देता है जहाँ देवगिरी की एक अर्धनग्न दासी पहले से उपस्थित होती है। दासी की तरफ देखकर काफूर बोलता है, ‘महाराज का विशेष ख्याल रखना, आप शाही मेहमान हैं।’

काफूर कक्ष से बाहर आ जाता है और राजा धम्म से शय्या पर बैठ जाता है।

सुधीर मौर्य

नाम - सुधीर मौर्य जन्म - ०१/११/१९७९, कानपुर माता - श्रीमती शकुंतला मौर्य पिता - स्व. श्री राम सेवक मौर्य पत्नी - श्रीमती शीलू मौर्य शिक्षा ------अभियांत्रिकी में डिप्लोमा, इतिहास और दर्शन में स्नातक, प्रबंधन में पोस्ट डिप्लोमा. सम्प्रति------इंजिनियर, और स्वतंत्र लेखन. कृतियाँ------- 1) एक गली कानपुर की (उपन्यास) 2) अमलतास के फूल (उपन्यास) 3) संकटा प्रसाद के किस्से (व्यंग्य उपन्यास) 4) देवलदेवी (ऐतहासिक उपन्यास) 5) मन्नत का तारा (उपन्यास) 6) माई लास्ट अफ़ेयर (उपन्यास) 7) वर्जित (उपन्यास) 8) अरीबा (उपन्यास) 9) स्वीट सिकस्टीन (उपन्यास) 10) पहला शूद्र (पौराणिक उपन्यास) 11) बलि का राज आये (पौराणिक उपन्यास) 12) रावण वध के बाद (पौराणिक उपन्यास) 13) मणिकपाला महासम्मत (आदिकालीन उपन्यास) 14) हम्मीर हठ (ऐतिहासिक उपन्यास ) 15) अधूरे पंख (कहानी संग्रह) 16) कर्ज और अन्य कहानियां (कहानी संग्रह) 17) ऐंजल जिया (कहानी संग्रह) 18) एक बेबाक लडकी (कहानी संग्रह) 19) हो न हो (काव्य संग्रह) 20) पाकिस्तान ट्रबुल्ड माईनरटीज (लेखिका - वींगस, सम्पादन - सुधीर मौर्य) पत्र-पत्रिकायों में प्रकाशन - खुबसूरत अंदाज़, अभिनव प्रयास, सोच विचार, युग्वंशिका, कादम्बनी, बुद्ध्भूमि, अविराम,लोकसत्य, गांडीव, उत्कर्ष मेल, अविराम, जनहित इंडिया, शिवम्, अखिल विश्व पत्रिका, रुबरु दुनिया, विश्वगाथा, सत्य दर्शन, डिफेंडर, झेलम एक्सप्रेस, जय विजय, परिंदे, मृग मरीचिका, प्राची, मुक्ता, शोध दिशा, गृहशोभा आदि में. पुरस्कार - कहानी 'एक बेबाक लड़की की कहानी' के लिए प्रतिलिपि २०१६ कथा उत्सव सम्मान। संपर्क----------------ग्राम और पोस्ट-गंज जलालाबाद, जनपद-उन्नाव, पिन-२०९८६९, उत्तर प्रदेश ईमेल [email protected] blog --------------http://sudheer-maurya.blogspot.com 09619483963

One thought on “उपन्यास : देवल देवी (कड़ी 40)

  • विजय कुमार सिंघल

    कायरों को इसी तरह अपमानित होना पड़ता है ! अच्छा उपन्यास !

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