उपन्यास : देवल देवी (कड़ी 41)
37. बलात् समर्पण की रात्रि
देवलदेवी फूल, कलियों, रत्न और जवाहरात से सजी शय्या पर बैठी है। उसकी देह इत्र की खुशबू से महक रही है। उसकी देह पर सोलह श्रंगार किए गए हैं और विभिन्न प्रकार के गहनों से सजाया गया है। कक्ष में इत्र और गुलाबजल की महक बिखरी हुई है। आज दोपहर उनका निकाह शहजादे के साथ किया गया है। राजकुमारी ने अपने कोमल हृदय पर पत्थर रखकर इस निकाह को स्वीकार किया है। वह पास में खड़ी अपनी सखी प्रमिला से कहती है, ”प्रमिला, अब तुम जाओ शहजादे कभी भी कक्ष में आ सकते हैं।“
”राजकुमारी, जाती हूँ, पर एक जिज्ञासा मन में थी यदि आज्ञा हो तो पूछूँ?“
”पूछो प्रमिला, अवश्य पूछो, यहाँ तुम्हारे अतिरिक्त और है ही कौन जिससे हम मन की कह सकें।“
”राजकुमारी, आज आपकी सुहागरात है, क्या आपको बालक धर्मदेव, युवराज शंकरदेव के प्रेमबंधन आज उद्विग्न नहीं कर रहे, क्या उनका स्मरण आपको नहीं आ रहा?“
”धर्मदेव से तो पहली दृष्टि का स्नेह था पर युवराज शंकर ने हमारी देह को स्पर्श किया था हम अंकपाश में स्खलित हुए थे। वे दोनों ही हमारे हृदय के मंदिर के देवता की तरह विराजमान हैं। प्रमिला आज तो हम प्रेम का स्वांग भरेंगे। इस यवन शहजादे को देवलदेवी नहीं उसकी मृत देह समर्पित होगी। आज शय्या पर हम प्रेमिका या पत्नी नहीं एक वेश्या की तरह होंगे। वह वेश्या जो अपनी देह का सौदा करती है, मैं भी सौदा करूँगी प्रमिला स्वधर्म की पुनः स्थापना के लिए इस देह का सौदा। राष्ट्र, कुल और धर्म का नाश करने वालों का नाश करने के लिए तिरोहित कर दूँगी यह नश्वर देह। उस दिन मेरी इन तड़पती आँखों और जलते हृदय को चैन मिलेगा जिस दिन हम खिलजी राजकुल का अंतिम दीपक भी बुझा नहीं देंगे। और हाँ प्रमिला, इस यज्ञ में अब तुम्हें भी अपने देह की आहूति चढ़ानी होगी।“
”मैं सदैव तैयार हूँ राजकुमारी, आज्ञा दें। पर किसके साथ?“
”मालिक काफूर के साथ। तुम्हें संभवता ज्ञात नहीं वह भी पूर्व जीवन में हिंदू रह चुका है, तुम्हें उसके हृदय में सुल्तान बनने की इच्छा प्रबल करनी है। किंतु सावधानी से। वह दक्षिण जा रहा है, इसलिए यह कार्य मेरे लिए तनिक कठिन होगा। तुम उसकी प्रेयसी का स्वांग भरके उसके साथ जाओ और यह कार्य पूर्ण करो।“
”जो आज्ञा राजकुमारी, मैं इस यज्ञ में स्वयं को अर्पित करती हूँ, अब आज्ञा दें, शहजादे आते ही होंगे।“
”जाओ, ईश्वर तुम्हारा कल्याण करें।“
रोचक उपन्यास ! अपने धर्म और देश की रक्षा के लिए शरीर का बलिदान कर देना उत्कृष्ट देशप्रेम है।