कविता

खाली बोतल

शाम के गहराते साए ने

कितना खामोश कर दिया है आसमान को

मानों छीन ली हो सारी रौनक

वहाँ दूर सागर में

डूब रही है आज की आस

जो सुबह चमकी थी तुम्हारी राहें देखने

पी लिया मैंने फिर से

पूरा का पूरा एक दरिया घूँट-घूँटकर

देखो, यही बताके

कब से उदास पड़ी ये खाली बोतल…..

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन

One thought on “खाली बोतल

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

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