गीतिका – कभी मोदी, कभी भुट्टो रहे हैं
जहाँ भी बीज दिल के बो रहे हैं।
वहींपर कैद सपने हो रहे हैं।
थमाने को गये पतवार जिनको,
सुना वो मुद्दतों से सो रहे हैं।
अगर हँसते तो गुलशन सूख जाता,
हवा में टँग तभी तो रो रहे हैं।
जमाने को दिखाना है बहुत कुछ,
नहीं बस जिन्दगी को ढो रहे हैं।
कहाँ चल पा रही है दूरियों की,
हमें खोना है जिनमें, खो रहे हैं।
न एक किरदार में अब काम चलना,
कभी मोदी, कभी भुट्टो रहे हैं।
ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन आख़िरी शेर का भाव समझमें नहीं आया।
बहुत खुब!