कविता

वो तो माँ ही थी…

दुःख सहकर भी जो हरषाई

वो तो माँ ही थी

जन्म दिया बेटी को और मुस्काई

वो तो माँ ही थी

कभी ना किया गिला ना शिकवा

हुआ ना जिसका कोई मितवा

फिर भी जग को दिया हैं जितवा

मेरे दुःख में रोये जिसका मनवा

वो तो माँ ही थी

खुद ना जानी पढ़ना -लिखना

मुझे सिखाये सारे पाठ

सुई तागे की दुरी में

उम्र हो गई जिसकी साठ

उसकी ख़ातिर ही हैं

मेरे जीवन के ये ठाठ

मेरे आने की जोहती जो बाट

वो तो माँ ही थी

अपने चाम की जूती पाऊँ

फिर भी क़र्ज़ चुका न पाऊं

कोई तो वो राह बता दे

जिस पर चलकर तुझको पाऊं

तेरे अंचल की छाया में

मुझ पर आई कोई ना आंच

वो तो माँ ही थी

वो तो माँ ही थी

चन्द्रकान्ता सिवाल ‘चंद्रेश’

चन्द्रकान्ता सिवाल 'चंद्रेश'

जन्म तिथि : 15 जून 1970 नई दिल्ली शिक्षा : जीवन की कविता ही शिक्षा हैं कार्यक्षेत्र : ग्रहणी प्ररेणास्रोत : मेरी माँ स्व. गौरा देवी सिवाल साहित्यिक यात्रा : विभिन्न स्थानीय एवम् राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित कुछ प्रकाशित कवितायें * माँ फुलों में * मैली उजली धुप * मैट्रो की सीढ़ियां * गागर में सागर * जेठ की दोपहरी प्रकाशन : सांझासंग्रह *सहोदरी सोपान * भाग -1 भाषा सहोदरी हिंदी सांझासंग्रह *कविता अनवरत * भाग -3 अयन प्रकाशन सम्प्राप्ति : भाषा सहोदरी हिंदी * सहोदरी साहित्य सम्मान से सम्मानित