कविता

नज्म

रंज यह नहीं कि कोई गुफ्तगु नहीं अब दरमयां |
मलाल यह भी नहीं कि गैरों से हैं अब सिलसिले |
इक छोटा सा सवाल है रह- रहकर जो जहन मे आया |
क्या दस्तूर है ज़िन्दगी का क्यों नादान दिल समझ ना पाया |
सच्चाई की कीमत अब नहीं दिखती यह समझ आया |
वफा बरसों से करके भी आखिर दिल ने क्या पाया |
जाने किस कशिश से बँधे हैं अभी भी रिशते |
जाने क्या बाकि अब और रह गए इम्तिहाँ |||

कामनी गुप्ता

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |

2 thoughts on “नज्म

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया कविता. यह ग़ज़ल नहीं कही जा सकती !

    • कामनी गुप्ता

      जी धन्यवाद !

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