कविता

गुमान

पंच तत्वों की , काया पर इंसान​,
क्यों इतना गुमाँन करे !
सदियों सी बटी हुई दिल की बाती,
सुलगती जा रही है !
तन की माटी का मोह, जाता नहीं,
मन की हाँडी में ख्बाईशें ,
उबलती जा रही हैं !
ऋतु बदली,बदला मौसम ,
मन का “मैं”जाता नहीं !
प्यार ,मोहब्बत जज्बातों से परे,
आत्मा मुक्ती चाह रही है!
रिश्तों में सीलन, देर तक रहे,
फफूँद जाती नहीं!
दिल के आँगन में सूरज के
चूल्हे की आग​,
धधकती जा रही है!
जिंदगी के बोझ तले अब​,
घुटन सी लगती है!
मोहन ! तेरे मिलन की चाह ,
मन को जला रही है!
दिल की लगन तुमसे,”आशा”,
लफ़्ज़ों में कह न पाये!
मोहन ! शीश रख दिया,
चरणों में तेरे,
अँखिया क्यों नीर बहा रही हैं !

— राधा श्रोत्रिय​ “आशा”

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"

2 thoughts on “गुमान

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर कविता

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता।

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