“जुदाई”
वाह रे जिंदगी तुं भी कितनी अजीब है
रहने को दूर दूर पर कहने को करीब है |
पल-पल सरकती हुयी अंतिम पड़ाव तक
बेबस है दुनियां, कहने को यही नशीब है ||
कम नही, बिन जान खड़ी हो जाती है तूं
नेकी और बदी का पुलिंदा खोल जाती है तूं |
गिरा जाती है माया का सजा हुआ महला
छोड़ जाती है यादें, शेष बहा जाती है तूं ||
गम की तिजोरी में हंसती है ठठाकर
मरहम किसे लगाये कोई करीब जाकर |
आतंक है तेरा किराये के घर पर भी
सजती-संवरती है रूप सुहागन बनाकर ||
नितनव खेल खेलती है आशा के पथपर
बनते-बिगडते रिश्ते भी स्वार्थी पैबंदपर |
छोड़ जाती है बिरानियाँ कई आँखों में
बेवफा कैसे कहूँ जब यारी है तेरी तर्जपर ||
अंत में हंसना आता है तेरी सगाई देखकर
फूलों सजा गजरा, डोली में बिदाई देखकर
फूट-फूटकर करुणा-करुणा से लिपटती है
सन्नाटा सा छा जाता है तेरी जुदाई देखकर ||
महातम मिश्र
बहुत शानदार !
hardik dhanyvad shri vijay ji aap ne is rachana ko saraaha, mai dhany ho gaya manyavar, aabhar