कविता

“जुदाई”

वाह रे जिंदगी तुं भी कितनी अजीब है

रहने को दूर दूर पर कहने को करीब है |

पल-पल सरकती हुयी अंतिम पड़ाव तक

बेबस है दुनियां, कहने को यही नशीब है ||

कम नही, बिन जान खड़ी हो जाती है तूं

नेकी और बदी का पुलिंदा खोल जाती है तूं |

गिरा जाती है माया का सजा हुआ महला

छोड़ जाती है यादें, शेष बहा जाती है तूं ||

गम की तिजोरी में हंसती है ठठाकर

मरहम किसे लगाये कोई करीब जाकर |

आतंक है तेरा किराये के घर पर भी

सजती-संवरती है रूप सुहागन बनाकर ||

नितनव खेल खेलती है आशा के पथपर

बनते-बिगडते रिश्ते भी स्वार्थी पैबंदपर |

छोड़ जाती है बिरानियाँ कई आँखों में

बेवफा कैसे कहूँ जब यारी है तेरी तर्जपर ||

अंत में हंसना आता है तेरी सगाई देखकर

फूलों सजा गजरा, डोली में बिदाई देखकर  

फूट-फूटकर करुणा-करुणा से लिपटती है  

सन्नाटा सा छा जाता है तेरी जुदाई देखकर ||

महातम मिश्र

 

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

2 thoughts on ““जुदाई”

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार !

    • महातम मिश्र

      hardik dhanyvad shri vijay ji aap ne is rachana ko saraaha, mai dhany ho gaya manyavar, aabhar

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