कविता

आज भी!

मुझे सचमुच आश्चर्य है कि उम्र के इस पड़ाव पर भी मेरी प्राथमिक्ताएं और मेरी पसंद हूबहू वही है। मुझे आज भी हरियाली, हरी भरी वादियां, झील, झरने, बर्फ से ढकी चोटियां, बरसात की रिम-झिम, बादलों का गर्जना और कोहरे में डूबी हुई रातें उतना ही आकर्षित करते हैं, मेरे अंदर वैसा ही स्पंदन पैदा करते हैं, जैसा आज से पहले कभी भी करते थे। और आज भी मैं अपने आप को विचारों के उसी धरातल पर खड़े हुए पाता हूॅं।

उम्र के पहले हिस्से से ले कर आज, इस पल तक कभी भी मैं ने अपनी सोच में, अपनी उर्जा में, कोई अंतर महसूस नहीं किया। मानसिक स्तर पर मैं आज भी बिलकुल वहीं हूूं जहां तब था, आज से आधी सदी पहले।

आज अपनी उम्र बहत्तर साल बताते हुए मुझे एक पल को भी ऐसा नहीं लगता कि यह उम्र एक बूढ़े व्यक्ति की होती है। मेरे लिए यह बहत्तर एक अंक है, एक गणना है, उम्र का एक नाम है।

सौंदर्य आज भी मुझे चुम्बक की तरह अपनी ओर खींचता है और प्यार मेरे लिए आज भी उतना ही तरल है। आज भी मैं उस की गहराइयों में खो जाना चाहता हूॅं और मेरे लिए इन पंक्तियों के मायने आज भी वही हैं।

तुम कितना भी हठ करो,
सौन्दर्य,
हो वह चाहे
झील, झरने
नदी, पहाड़, या
मेमने का,
खींच ही लेगा तुम्हें
बरबस,
अपनी ओर
चुम्बक की तरह
तुम कितना भी हठ करो।

प्यार तो तरल होता है,
हो वह चाहे,
मां, बच्चे, प्रेयसी  या वतन का,
खींच ही लेगा तुम्हें
गहराईयों में,
और डूबना
तुम्हारी नियति है
तुम जितना भी हठ करो।

-बलवंत सिंह अरोड़ा
02-02-11

बलवंत सिंह अरोरा

जन्म वर्ष १९४३, लिखना अच्छा लगता है। निवास- शहरों में शहर....लखनऊ।

4 thoughts on “आज भी!

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कविता बहुत अच्छी लगी ,मैं भी ७२ का ही हूँ ,अपनी मेडिकल कंडीशन होते हुए भी मैं जवान हूँ .

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया कविता !

  • Manoj Pandey

    अच्छी कविता है, पर इसे संस्मरण में न दिखिएँ। संस्मरण तो किसी यात्रा, पर्यटन स्थल, किसी व्यक्ति से मिलन या फिर बीती हुई किसी दुर्लभ धटना का होता है।

    • विजय कुमार सिंघल

      धन्यवाद. मैंने इसे कविता श्रेणी में रख दिया है.

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