मुक्तक/दोहा

मुक्तक

सुहाना नेह का रिश्ता , इसे दिल में बसा लूँ मैं

तुम्हारा आसरा पाकर, जहाँ सारा भुला दूँ मैं

तुम्हीं हो आरजू मेरी , तुम्हीं मेरी इबादत हो

मिलन के मिल सके दो पल, उन्हें कविता बना लूँ मैं

— शान्ति पुरोहित 

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

2 thoughts on “मुक्तक

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अछे विचार .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा मुक्तक, बहिन जी !

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