सावन भादों
दिनकर की स्वर्णिम किरणों ने,
धरती का सुंदर रूप सजाया ,
काले मेघो ने सूरज के संग
आँख मिचोली खेल रचाया,
अब तो रिम झिम-रिम झिम बूँदें ,
अमृत बन कर बरस रहीं हैं,
एक झलक प्रियतम की पाने,
अँखियाँ जैसे तरस रहीं हैं,
टिप टिप गिरती बूंदों ने ,
मनभावन संगीत रचाया है,
मन सागर में उठी हिलोरें ,
सब का मन हर्षाया है,
ऐसे में यारों की महफ़िल,
अद्भुत रंग जमाती है ,
जीवन है वरदान ,
जब सावन भादों ऋतू आती है.
— जय प्रकाश भाटिया