प्रस्ताव निवेदित करता हूँ
संचित कर अपने ह्रदय भाव,…प्रस्ताव निवेदित करता हूँ
स्नायु तंत्र में तुमसे प्रिय, मैं अभिलाषा स्पंदित करता हूँ
है स्वप्न धरा जो नयनन में, कल्पन होकर भी शाश्वत है
हर श्वास मैं अपने जीवन की प्रिय तुमको प्रेषित करता हूँ
प्रिय तुमसे पूर्ण हुई हर इच्छा, तुमसे जीवन का अर्थ हुआ
तुम्हें देख हर्षित है मन,… तुम्हें सोच के ही मैं समर्थ हुआ
शाश्वत को जीवन करने की आशा अभिलाषित करता हूँ
हर श्वास मैं अपने जीवन की प्रिय तुमको प्रेषित करता हूँ
ह्रदय विशाल विकल होता, तुम बिन मैं ना सफल होता
तुम बिन जीवन जीता तो पर आत्म तृप्ति ना फल होता
जीवन के सब पूजन-अर्चन, तुमको प्रिय अर्पित करता हूँ
हर श्वास मैं अपने जीवन की प्रिय तुमको प्रेषित करता हूँ
कल्पों से प्रतीक्षित हो प्रिय तुम, पर संकल्प तुम्ही हो बस
व्यथित व्यथा बाधित जीवन में हर्ष विकल्प तुम्ही हो बस
प्रिय रुधिर धमनियों में अपनी, मैं प्रेम संवेदित करता हूँ
हर श्वास मैं अपने जीवन की प्रिय तुमको प्रेषित करता हूँ
_____________________________अभिवृत
बढ़िया गीत. पर कई शब्द कठिन हैं.
हार्दिक आभार नीलेश जी | आपका कहना उचित है कि कुछ शब्द कठिन है ….जो कि रचनाकार की शैली के परिचायक है …भाव समझने के लिए कुछ योगदान पाठक को भी करना चाहिए 🙂
आपकी कविता अच्छी है.
आपका आभार जगदीश जी
अच्छी प्रेम कविता है. लेकिन कुछ शब्द बहुत कठिन लगते हैं. कुछ सरल शब्दों का प्रयोग किया जाता तो कविता अधिक सरस होती.
आपकी बात सही है.
आपका हार्दिक अभिनन्दन विजय जी …..मैं जब लिखता हूँ तो जो भाव और शब्द दिल से आते हैं वो कविता के रूप में उतर जाते हैं …सरलता के लिए सत्य से खिलवाड़ करना मैं उचित नहीं समझता …..यदि आप चाहें तो मैं कठिन शब्दों के अर्थ लिख दिया करूँगा साथ में …पर इससे पाठक कुछ सीखेंगे नहीं …