लहु की अंतिम बूदों से….
लहु की अंतिम बूदों से, तेरे गुलशन को सींच चले।
वतन की आन बान खातिर, चढा कर अपना शीष चले॥
कसम तेरे आंचल की मां, कदम ना एक हटे पीछे।
गोलियां सीने पर खायी, दबा कर दर्द भरी चीखें ॥
चूम कर पावन माटी को, लिये तेरा आशीष चले….
वतन की आन बान खातिर, चढा कर अपना शीष चले…..
हौसला मुकने नही दिया, कारवां रुकने नही दिया।
धराशायी होकर भी मां, तिरंगा झुकने नही दिया॥
लगा कर प्राणों की बाजी, अटल कर तेरी जीत चले…..
वतन की आन बान खातिर, चढा कर अपना शीष चले…..
लहु गर और बचा होता, समय कुछ देर रुका होता।
जहां तक नजर पहुंच जाती, तिरंगा फहर गया होता॥
चुका कर कर्ज दूध का मां, लिये तेरा आशीष चले….
वतन की आन बान खातिर, चढा कर अपना शीष चले…..
सतीश बंसल
वाह वाह ! बहुत सुंदर और प्रेरक गीत !