कविता

आजादी दिवस पर हर सच्चे हिन्दुस्तानी का दर्द

धुंधले बादल छंट जायेंगे ,कब ऐसी सुबह आएगी ,
नवभोर की स्वर्णिम लालिमा जब गीत नए सुनाएगी .
घाटी की माटी पर जब जब हरा झंडा फेहराता है ,
सब्र का बाँध टूट जाता है ,दिल पर पत्थर पड़ जाता है,
मेरी माँ सब कुछ सह सकती है, पर ये उसको बिलकुल नहीं भाता है .
माँ आज पूछ रही है हमसे ,ऐसा कब तक देखोगे ,
मेरी आन बान शान को यू ही कब तक बेचोगे ,
राजनीति की बिसात पर क्या यूँ ही मोहरे बदले जांयगे ,
अरे माँ पूछ रही है आज मेरे अच्छे दिन कब आयेंगे.
मेरा मन सिंहर उढ़ता है जब बार बार मुझ पर हमले होते है ,
मेरे बेटो के सिर कट जाते है, उनके शरीर छलनी होते है ,
खून के आसूं रो –रो कर यूँ ही अपने को कब तक कोसुंगी ,
शांति से मै कब जीऊँगी कब सुख चैन भोंगुगी ,
तुम अब क्या देख रहे हो ,जंजीरों को खोलो तुम ,
स्वार्थ को अपने छोडो ,धर्म जाति में मत तोलो तुम ,
निहत्थे ही हम निपट लेंगे ,एक बार तो बोलो तुम ,
तुम ये कैसे भूल रहे हो ,
आजाद भगत अब्दुल कलाम सैंकड़ो अपनी कोख से जन्मे है
,वो ही खून रगो में बहता ,वो ही सबके सपने है ,
सपनो को मेरे साकार कर दो ,गुंजायमान हो बस वन्देमातरम ,
चारों ओर लहराए तिरंगा ,हर जन गाये जन –मन- गण .
जय हिन्द, जय भारत

— अशोक गुप्ता (आटे वाले)

अशोक गुप्ता

साहिबाबाद निवासी, आटे-अनाज के व्यापारी, मंचों पर कवितायेँ भी पढ़ते हैं.