कहानीलघुकथा

आश्रम

आश्रम

ये उन दिनो की बात है जब भारत में राजाओ का शाशन चल रहा था. उस वक़्त सुलतानपुर की सल्तनत पर जितेंद्र नामक एक राजा का राज्य था.उनका बहुत बड़ा राज्य था,और वहा की जनता खुशि खुशि अपना जीवन बिता रहे थे.एक दिन राजा के महल के सामने एक महात्मा का आगमन हुआ और उन्होंने राज्य दरबार पर पहरा दे रहे सैनिको से पूछा की “क्या मैं इस आश्रम में अपना कुछ वक़्त गुजार सकता हु..?

सैनिको ने कहा “मुनिवर यह आश्रम नहीं है,राजमहल है..|

महात्मा बोले, तुम झूठ बोल रहे हो यह राजमहल नहीं आश्रम ही है.

उन दोनों में रिक जीक बढ गयी तब महाराज जितेंद्र तक इस बात को सैनिको ने भिजवाया. महाराज आये और उन्होंने महात्मा से कहा, महात्मा जी | यह मेरा अपना महल है इसे आश्रम कह कर मेरा अपमान कर राहे है.

महात्मा जी हँस पड़े और महराज से बोले, सम्राट जब मैं पहले यहाँ आया था तो यहाँ एक दूसरा इंसान ठहरा हुआ था.
महराज जितेंद्र बोले.”वो मेरे रिश्तेदार साहब थे और यहाँ ठहरे नहीं बल्कि यही इसी महल में वो रहते थे.
“”उससे पहले भी यहाँ एक इंसान ठहरा हुआ था और मैंने उसे समझाया भी थे ये महल नहीं आश्रम है. उसने मेरी बात नहीं मानी और चला गया अब आप ही बताओ जिस जगह में कभी कोई आकर रहता है कभी कोई तो उस जगह को आश्रम नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे..?

महाराज जितेंद्र की आँखे खुल गयी और वो उस महात्मा के चरणों में गिर पड़े और बोले , महात्मा जी ! ये मेरा भ्रम था जो मैं इसे राजमहल समझता था, वास्तव में ये तो एक आश्रम है ! आप आइये और इस आश्रम में जितना दिन आपकी इक्षा करे ठहरिये मैं कही और जाकर रहूँगा.

संसारी जीवन और सांसारिक सुख अस्थाई नहीं होता! इस बात को जो समझ लेता है , वो इस मोह माया की नागरी से दूर होकर अपना सच्चा आनन्द जीवन जीता है! गीता में कहा गया है – यह मैं हु, यह मेरा है ऐसा कहने वाला इंसान कभी अपना जीवन सुखमय नहीं बिता सकता क्युकि यह संसार में बनाई हुई हर चीज़ नष्ट होने के लिए है और हो जाती है कुछ भी किसी का नहीं है.

अखिलेश पाण्डेय

नाम - अखिलेश पाण्डेय, मैं जिला गोपालगंज (बिहार) में स्थित एक छोटे से गांव मलपुरा का निवासी हु , मेरा जन्म (23/04/1993) पच्छिम बंगाल के नार्थ चोबीस परगना जिले के जगतदल में हुआ. मैंने अपनी पढाई वही से पूरी की. मोबाइल नंबर - 8468867248 ईमेल आईडी [email protected] [email protected] Website -http://pandeyjishyari.weebly.com/blog/1