कुण्डली/छंद

सिसकियां…

घरों से सिसकियों की आवाजें, आती हैं हर रोज
बेटियां दहेज की खातिर, जलाई जातीं हैं हर रोज।
तुझे आजादी का सूरज कहूं भी, तो कैसे कहूं
बेटियों की दरिन्दगी से नोची हुई, लाशें पाई जाती हैं हर रोज॥

चार दीवारी की घुटन में जाने कितनें सपनें दम तोडतें हैं, हर रोज
और जाने कितने युवा, समाज की झूठी शान का कफन ओढतें हैं, हर रोज
जानें कितनी कितनी बेटियां आज भी अपनों के हाथ दफनां दी जाती है
जानें कितनें अहसास घुट कर दम तोडतें हैं, हर रोज॥

श्रृष्टा तलाशती है अपना वजूद समाज के अंधेरों में, हर रोज
वहशियत झांकती है, इन्सानी डेरों में ,हर रोज।
कब बचाये अपने पाक दामन को, वहशी दरिन्दों से
बेटी पुकारती है आजादी की रोशनी को, हर रोज॥

घरों से सिसकियों की आवाजें, आती हैं हर रोज
बेटियां दहेज की खातिर, जलाई जातीं हैं हर रोज।
तुझे आजादी का सूरज कहूं भी, तो कैसे कहूं
बेटियों की दरिन्दगी से नोची हुई, लाशें पाई जाती हैं हर रोज….

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

3 thoughts on “सिसकियां…

  • शशि शर्मा 'ख़ुशी'

    बेहद मार्मिक

  • वैभव दुबे "विशेष"

    मार्मिक रचना सर
    हृदय को छू गई

    • सतीश बंसल

      आभार वैभव जी..

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