दोहे (हिंदी दिवस विशेष)
हिंदी में बसते सदा, तुलसी सूर कबीर।
बसे बिहारीलाल हैं, अरु मीरा की पीर॥1॥
हिंदी भाषा ग्राम्य है, ऐसा व्यर्थ विचार।
अतिशय सुंदर सरस है, पढ़े-लिखे संसार॥2॥
राम चरित मानस सरिस, हिंदी में सद्ग्रंथ।
जिसके पाठन-पठन से, पाए कई सुपंथ॥3॥
खुसरो की मुकरी करें, हिंदी का श्रृंगार।
सरस बहे रसखान से, सतत् भक्ति रसधार॥4॥
हिंदी भारत भाल की, बिंदी है अभिराम।
हिंदी से होती सुबह, हिंदीमय है शाम॥5॥
हिंदी अपनी सभ्यता, हिंदी अपना धर्म।
हिंदी रीति-रिवाज है, हिंदी हैं शुभ कर्म॥6॥
हिंदी को मैंने पिया, घुट्टी के ही संग।
हिंदी ने मुझको दिया, जीने का इक ढंग॥7॥
हिंदी बस भाषा नहीं, हिंदी है संस्कार।
हिंदी में ही दिख रहा, अनुपम सद्व्यवहार॥8॥
दोहा-रोला-सोरठा, चौपाई से छंद।
हिंदी कोटिक रत्न में, अनुपम कई प्रबंध॥9॥
हिंदी गंगा जानिए, दोनों एक समान।
अपने में ले सब समा, गैर नहीं अनुमान॥10॥