संस्मरण

मेरी कहानी 54

मैट्रिक के रिज़ल्ट के बाद अब हम ने फैसला करना था कालज जाने का। जीत बहादर ने तो फैसला कर लिया था कि उन्होंने रामगढ़िया आर्ट्स कालज जाना था। भजन ने पढ़ाई को सलाम कर दिया और अपने पिता के साथ गाँव में ही काम करने लगा। उनके पिता जी की आटा पीसने की चक्की थी। इस के इलावा उन्होंने धान और रूई की मछींन भी लगाईं हुई थी। भजन के चाचा जी और उनके बच्चे और दो बज़ुर्ग सभी कूंएं का सारा सामान भी खुद बनाते थे, जिस से उन को काफी अच्छी आमदनी हो जाया करती थी। इन  मछीनों  वाली  जगह पर काफी रौनक होती थी। गाँव में एक और भी चक्की होती थी लेकिन भजन का काम बहुत बड़ा होता था। भजन की तो सगाई भी हो गई भुल्ला राई गाँव की एक लड़की से। मैट्रिक के बाद भजन से  मेरा संपर्क तो बहुत कम हो गिया लेकिन जीत क्योंकि उसी मुहल्ले का रहने वाला था , उस का संपर्क बना रहा।

मैंने सोच रखा था कि मैं पॉलिटैक्निक कालज जाऊँगा। इस का भी एक कारण था। बहुत साल पहले मेरे मामा जी का लड़का संतोख सिंह फगवारे पॉलिटैक्निक कालज में पड़ा करता था। क्योंकि बड़े भाई संतोख सिंह का गाँव  यानी मेरे ननिहाल डींगरीआं गाँव जो आदम पुर  के नज़दीक है फगवारे से बहुत दूर है ,इसलिए वोह हमारे गाँव ही रहा करता था और यहां से ही फगवारे को पड़ने के लिए जाया  करता था. इस का एक कारण और भी था कि संतोख का पियार मेरी माँ से बहुत होता था क्योंकि मेरी माँ संतोख की बुआ ही लगती थी। मैं तो उस वक्त बहुत छोटा था लेकिन जब तक  संतोख पढ़ाई खत्म करके भाखड़ा डैम नंगल में ड्राफ्ट्स  मैन लग गिया था। बहुत वर्षों बाद जब मैं भी मैट्रिक में पड़ने लग गिया था तो संतोख जब भी हमारे गाँव आता ,मुझे यही कहता कि मैं आर्ट्स कालज नहीं जाऊं बल्कि पॉलिटैक्निक कालज जॉएन करूँ और इलैक्ट्रिकल या मकैनिकल इन्ज्नीरिंग का कोर्स लूँ। इसी लिए मेरा आर्ट्स कालज जाने को मन नहीं माना और पॉलिटैक्निक कालज जॉएन करने की ठान ली। यहां मैं यह भी बता दूँ कि संतोख सिंह अब बहुत देर का रिटायर हो चुक्का है और उस की उम्र ८० के करीब होगी। दोनों मिआं बीवी हुशिआर पर रहते हैं लेकिन उन के कोई बच्चा नहीं हुआ , इस लिए संतोख ने अपनी बहन की लड़की अडॉप्ट कर ली थी। लेकिन दुःख की बात यह है कि संतोख को एलज़ाइमर हो चुक्का है और याददाश्त ख़त्म हो चुक्की है।

मैंने सारे फ़ार्म भरके और अपना सकूल का सर्टिफिकेट और साथ ही करैक्टर सर्टिफिकेट फ़ाइल करके पालीटेक्निक कालज ले गिया। प्रिंसीपल से मेरी इन्तर्विऊ हुई और प्रिंसीपल की  तरफ से एक किसम कि हरी झंडी मिल गई। किओंकि इलेक्ट्रीकल और मकैनिकल इन्ज्नीरिंग कि सिर्फ तीस तीस सीटें ही थीं और सिवल इन्ज्नीरिंग कि साठ सीटें थीं ,इस लिए इलेक्ट्रीकल और मकैनिकल की  सीटों के लिए कुछ कम्पीटीशन सा था। मुझे पूरी उम्मीद थी कि मुझे मेरी मुराद के मुताबक सीट मिल जायेगी।  जिस दिन मेरी इंटरवीऊ थी ,उस से एक दिन पहले बहुत बारष  हो गई थी और जो सड़क हमारे गाँव से सीधी बार्न प्लाही के रास्ते फगवारे को जाती थी वोह बहुत खराब हो गई थी और कैल (छोटी सी नदी ) के ऊपर पुल के दोनों ओर बड़े बड़े गड़े पड़  चुक्के थे , इस लिए फगवारे जाने के लिए दूसरे रास्ते पर जा सकते थे। यह रास्ता माधो पुर और चहेरु से हो कर और फिर जीटी रोड पर जा कर ही फगवारे जाया जा सकता था। इस रास्ते पर आधा घंटा और लग जाता था लेकिन कोई मुश्किल नहीं थी ,सिर्फ वक्त ज़्यादा ही लगता था।

नियत दिन मैं अपने बाइसिकल पर इंटरवीऊ के लिए चल पड़ा। धुप निकली हुई थी , दिन अच्छा था और उमीद थी कि वक्त से बहुत पहले ही पौहंच जाऊँगा। माधो पुर से कुछ ही आगे गिया तो आसमान पे बादल दिखने लगे। मैंने तेज तेज साइकल चलाना शुरू कर दिया। यों ही  चहेरु के नज़दीक पौहंचा तो बादल गरजने लगे और बारश शुरू हो गई। मैं भाग कर एक पशुओं वाले मकान में जा घुसा यहां एक दो  आदमी पहले से ही बैठे हुए थे। मूसलाधार बारष होने लगी। बारष भी इतनी कि कुछ ही मिनटों में पानी ही पानी दिखाई देने लगा। काफी देर  बारष होती रही , पानी ही पानी दिखने लगा। मेरा इंटरवीऊ का वक्त नज़दीक आने लगा और मैं फिकरमंद हो गिया। बारश कुछ कम हुई तो मैं  साइकल को दौड़ाने लगा। जीटी रोड चहेरु के नज़दीक ही है। जब जीटी रोड पर आया तो तेज तेज साइकल चलाने लगा। लेकिन मेरा इंटरवीऊ का वक्त निकल गिया। एक पैनिक की स्थिति में मैंने सारा जोर लगा दिया। यों यों फगवाड़ा नज़दीक आ रहा था , ऐसा लगता था कि आगे बारष इतनी नहीं हुई थी। फगवारे पौहंचा तो वहां बारष का नामो निशाँ ही नहीं था। कालज पौहंचा तो इंटरवीऊ हो चुक्की थी। मेरे कपडे अभी भी गीले थे और जो लड़के इंटरवीऊ के लिए आये हुए थे वोह कोई मानने के लिए तैयार ही नहीं था कि कहीं बारष हुई थी। मैं प्रिंसीपल के ऑफिस की और गिया और वहां खड़े चपड़ासी को अपनी समस्य बताई कि मुझे प्रिंसीपल से मिलना जरूरी था। चपड़ासी प्रिंसीपल के दफ्तर के अंदर गिया और कुछ देर बाद मुझे प्रिंसीपल से मिलने की इजाजत मिल गई। मैंने लेट होने की अपनी सारी समस्य बताई। प्रिंसीपल ने मेरी सारी फ़ाइल को बड़े धियान से देखा और कहा कि अगर मैं इंटरवीऊ के वक्त पौहंच जाता तो मेरा चांस पक्का था लेकिन इस वक्त सभी सीटें भर चुकी थीं। प्रिंसीपल ने मुझे यह भी कहा कि सिवल इन्ज्नीरिंग की बहुत सीटें अभी खाली थीं ,इस लिए मैं वोह ले लूँ। मेरा कोई अपना ख़ास तज़ुर्बा तो था नहीं लेकिन एक तो मेरे संतोख भाई ने बताया हुआ था कि मैं सिर्फ इलैक्ट्रीकल या मकैनिकल ही लूँ और दूसरे एक बात भी परचलत थी कि सिवल का कोई फायदा नहीं था लेकिन यह मेरी भूल ही थी क्योंकि बाद में मुझे मैहसूस हुआ कि सिवल में मैं ज़्यादा कामयाब हो सकता था। मैंने सिवल लेने से इंकार कर दिया और दफ्तर से बाहर आ गिया और वापस गाँव आ गिया।
अब मुझे एक बात और सताने लगी कि आर्ट्स कालज की पढ़ाई कब की शुरू हो चुक्की थी , मुझे वहां ऐडमिशन मिलेगी या नहीं ,इस से भी चिंता होने लगी। मेरे पिताजी भी अफ्रीका से आये हुए थे। उनको साथ ले के मैं आर्ट्स कालज आ गिया। आर्ट्स कालज के प्रिंसीपल अमर सिंह जी से उन के दफ्तर में मिले और पिताजी ने सारी समस्या बताई। प्रिंसीपल अमर सिंह जी एक भले और धार्मिक इंसान थे और कहने लगे ,कि मैं हैड क्लर्क के दफ्तर में जाकर फ़ार्म भर दूँ और जो सब्जैक्ट लेने हों मैं फ़ार्म में भर दूँ। प्रिंसीपल के दफ्तर से बाहर आकर मैं हैड क्लर्क के दफ्तर में चले गिया। हैड क्लर्क ने सब्जैक्ट के बारे में सारी जानकारी दी और कालज की फीस भी बता दी जो शायद अठारह या बीस रूपए महीना थी । मैंने कैमिस्ट्री फिजिक्स और मैथ्स लिया। इंग्लिश तो कम्पलसरी ही थी और दो औप्श्नल सब्जैक्ट मैंने पंजाबी और इतहास  ले लिया क्योंकि पंजाबी में मुझे बहुत दिलचस्पी थी और इतहास में भी काफी दिलचस्पी थी । टाइम टेबल का मुझे सब कुछ बता दिया गिया और दूसरे दिन से मैंने कालज आना शुरू कर देना था। बहादर और जीत तो पहले से ही आया करते थे। जीत ने भी वोह ही सब्जैक्ट लिए थे जो मैंने लिए थे लेकिन बहादर ने ऐक्नॉिमिक्स और पॉलिटिकल साइंस ली थी और ऐन सी सी भी जॉइन कर ली थी। दूसरे दिन मैं भी दोनों दोस्तों के साथ कालज आ गिया और ऐफ ए में दाखल हो गिया जिस को इंटरमीडिएट भी कहते थे।  पहला ही पीरियड था इंग्लिश का और वोह था प्रोफेसर पियारा सिंह की क्लास में।

स्कूल से आ कर कालज मुझे बहुत अजीब लगा। पहले तो ज़िंदगी में पहली दफा क्लास की सीटें ऐसी देखने को मिलीं जैसे हम सिनिमा हाल में आ गए हों। सिड़िओं की तरह सीटें नीचे से ऊपर को जाती थीं। फ्रंट की  सीटों पर सिर्फ लड़किआं ही बैठी थीं और पीछे सभी सीटों पर लड़के बैठे थे। लड़किओं को देख कर कुछ अजीब सा लगा क्योंकि मिडल स्कूल के बाद पहली दफा क्लास में लड़किआं देखि थीं और सभी जवान थीं जो बहुत सुन्दर सुन्दर कपड़ों में दिखाई दे रही  थीं। पहले दिन जब  पियारा सिंह का अंग्रेजी में लैक्चर सुना तो मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया। मुझे बहुत अजीब लगा क्योंकि कभी कोई शख्स इंग्लिश में बोलता सुना ही नहीं था। पियारा सिंह का इंग्लिश का उच्चारण मैंने ज़िंदगी भर किसी का नहीं सुना। लेकिन पियारा सिंह इंग्लिश डिपार्टमेंट का हैड था और उस की बहुत सी किताबे छप चुक्की थीं और एक किताब कालज में भी लगी हुई थी। पियारा सिंह बहुत बड़ीआ पगड़ी बांधते थे और हमेशा ऐचकन और तंग पजामे में होते थे जैसे जवाहर लाल नेहरू की ड्रैस होती थी। उस के इंग्लिश के उच्चारण की कुछ लड़के मिमक्री किया करते थे और बहुत हंसा करते थे। एक दफा कालज के एक फंक्शन के वक्त एक लड़के ने पियारा सिंह की मिमक्री कर दी , जिस से पियारा सिंह गुस्से में आ गिया और स्टेज पर आ कर गुस्से में बोलने लगे  लेकिन सभी लड़के लड़किआं डरने के बजाये ऊंची ऊंची हंसने लगे। इस के बाद पियारा सिंह स्टेज छोड़ कर बाहर चले गिया। यहां आ कर मैंने बहुत देशों के लोगों का इंग्लिश उच्चारण सुना लेकिन पियारा सिंह जैसा कभी नहीं सुना। अक्सर कुछ लड़के कहा करते थे कि पियारा सिंह का ऐक्सेंट सिआलकोटिआ था यानी पियारा सिंह पहले  स्यालकोट में रहा करते थे। मुझे पता नहीं यह स्यालकोट एक्सेंट किया था लेकिन मेरी पियारा सिंह की याद सिर्फ उसके ऐक्सेंट की वजह से ही है।

मैथ्स का कौन प्रोफेसर था ,याद नहीं लेकिन एक ही थे जो अरिथमैटिक कैल्कुलस ट्रिग्नोमैट्री ऐल्जेब्रा बगैरा  पढ़ाते थे। कैमिस्ट्री हरचरन सिंह पढ़ाते थे। हरचरन सिंह की बड़ी बड़ी मूंछें थीं और बहुत रोअब वाले थे, कभी हँसते नहीं देखे थे। फिजिक्स अजीत सिंह  पढ़ाते थे और फिजिक्स के  प्रैक्टिकल  ओम प्रकाश धीर जी  करवाते थे। अजित सिंह और ओम प्रकाश दोनों जवान थे और अभी दोनों की शादी भी नहीं हुई थी। ओम प्रकाश कुड़ता पजामा पैहनते थे और काफी स्मार्ट थे। अजीत सिंह भी बहुत स्मार्ट बन कर रहते थे, नैकटाई लगाते और पगड़ी बहुत खूबसूरत बांधते थे। इतहास प्रोफेसर टंडन पढ़ाते थे , कुछ मोटे ,गोरे पचास के करीब थे। इतहास बहुत मज़े से पढ़ाते थे और हँसते भी रहते थे। पंजाबी पहले गुरनाम सिंह पढ़ाते थे, और कुछ देर बाद अतर सिंह आ गए। वैसे तो गुरनाम सिंह भी बहुत अच्छे थे लेकिन प्रोफेसर अतर सिंह कुछ ज़्यादा ही अच्छे थे जिन्हें सभी विदियार्थी चाहते थे। इंग्लिश के प्रोफेसर पियारा सिंह जल्दी ही कहीं चले गए और नए प्रोफेसर रंजीत सिंह आ गए जो बहुत ही अच्छे और क्लास शुरू करने से पहले कोई शेर सुनाते थे और सब को खुश कर देते थे।

कालज का वातावरण बहुत अच्छा लगने लगा था। लेकिन मुझे कैमिस्ट्री कुछ मुश्किल लग रही थी और यही बात जीत के साथ भी हो रही थी। एक दिन मैं और जीत ने मशवरा किया कि कैमिस्ट्री छोड़ दें और कोई और सब्जैक्ट ले लें। हम ने कैमिस्ट्री के प्रोफेसर हरचरण सिंह के नाम ऐप्लिकेशन लिखीं कि हमें उनका पीरियड छोड़ने की इजाजत दी जाए। पहले जीत गिया और जल्दी ही बाहर आ गिया। उस को इजाजत मिल गई थी। जब मैं गिया तो हरचरण सिंह मुझे बोला कि वोह मुझे सब कुछ समझा देंगे क्योंकि उनके हिसाब से मैं कैमिस्ट्री में इतना बुरा नहीं था। अपनी ऐप्लिकेशन ले के मैं हरचरण सिंह के कमरे से बाहर आ गिया और जीत को सब कुछ बताया। जीत कुछ नाराज़ होने लगा कि हम दोनों ने इकठे मशवरा किया था , अब  वोह अकेला हो जायेगा। उस का मुंह रोने जैसा था। उस को इस तरह देख कर मैं फिर हरचरण सिंह के कमरे में गिया और कैमिस्ट्री छोड़ने की इजाजत मांगी। हरचरण सिंह ने जैसे मजबूर हो गिया हो, मेरी ऐप्लिकेशन पर साइन कर दिए और मैं बाहर आ गिया और जीत को बताया। जीत खुश हो गिया और हम नया सब्जैक्ट सोचने लगे। कुछ देर बाद हम ने एकनॉमिक्स लेने का फैसला कर लिया और एकनॉमिक्स के प्रोफेसर कुमार के कमरे में चले गए और एकनॉमिक्स लेने की दरखुआसत की जो उन्होंने मान ली और हम कुमार साहब से एकनॉमिक्स पड़ने लगे।

अब कालेज की पढ़ाई अच्छी तरह शुरू हो गई और हम कालज के वातावरण में अच्छी तरह घुल मिल गए।

चलता….

4 thoughts on “मेरी कहानी 54

  • विजय कुमार सिंघल

    भाईसाहब, आपको अपनी पसंद के कोर्स में बारिश से हुई देरी के कारण प्रवेश नहीं मिल सका यह जानकर दुख हुआ। लेकिन प्रभु की इच्छा शायद कुछ और थी। वैसे आपको सिविल में ही प्रवेश ले लेना था या अगले वर्ष फिर कोशिश करनी थी।
    आपकी याददाश्त की दाद देता हूँ।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      विजय भाई , भाग्य इंसान को कहाँ कहाँ ले जाता है ,कुछ पता नहीं लगता . किओंकि कारण ऐसे बन गए कि आगे पड़ ही नहीं सका ,बस यह मेरी सुनैहरी यादें ही रह गई हैं .

  • Man Mohan Kumar Arya

    नमस्ते एवं धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी आज की क़िस्त के लिए। आज की घटनाएँ जीवन की दिशा देने वाली है। आप मैकेनिकल वा इलेक्ट्रिकल इन्जिनीरिंग में बारिश के कारण प्रवेश लेने से रह गए। यह घटना कुछ प्रतिकूल है। आपने जिस प्रकार से घटनाओं का सजीव चित्रण किया है वह प्रशंसनीय है।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      मनमोहन भाई , बस भाग्य की बातें ही हैं ,मैं पड़ नहीं सका जिस का ज़िकर मैं कुछ अरसे बाद करूँगा .

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