गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : गरीब किसान

कहर प्राकृतिक क्या बरपा है, टूट चुका लो गरीब किसान
बेमौसम बरसात से उजड़े, हरे भरे खेत और खलिहान

आपदा घोषित ही करना, केवल सरकार को आता है
भरपाई उस क्षति की कैसे होगी जिसके छूटे प्राण

ब्लाक स्तरों पर संगोष्ठी का आयोजन क्या करेगा तय?
कैसे कर्ज को माफ किया जाये कैसे होगा ब्याज निदान

पच्चीस प्रतिशत कृषि बीमा की राशि भी वितरित की जाये
इस निर्णय के हो जाने से राहत फूंक सकेगी प्राण

रिजर्व बैंक भी अपना मानक कम कर दे बात बने
तैंतीस प्रतिशत हो जाने से कुछ तो कम होगा नुकसान

‘शान्त’ दुआ है राजनीति इस पर ना होन पाये फिर
अन्न को उपजाने वाले की भीड़ से हो हटकर पहचान

देवकी नन्दन ‘शान्त’

देवकी नंदन 'शान्त'

अवकाश प्राप्त मुख्य अभियंता, बिजली बोर्ड, उत्तर प्रदेश. प्रकाशित कृतियाँ - तलाश (ग़ज़ल संग्रह), तलाश जारी है (ग़ज़ल संग्रह). निवासी- लखनऊ

One thought on “ग़ज़ल : गरीब किसान

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सार्थक लेखन

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