गीतिका/ग़ज़ल

 नज़्म

धीरे-धीरे  वो  दिल में  समाने लगे
दूर थे  अब तलक  पास आने लगे

अपनी क़ातिल अदा से लुभाने लगे
ख़्वाब में  रात-भर  वो सताने लगे

देखकर उनका रुख़सारे-जल्वा-ए-नूर
चाँद-तारे  भी  अब   मुँह  छुपाने  लगे

सुर्ख़-लब  के  फड़कते  ही  बेसाख़्ता
पर  तितलियों के  भी  थरथराने लगे

खुलते ही  उनके गेसू,  घटा  छा  गई
मेघ  ख़ुशियों  की   बूंदें  गिराने  लगे

मैकदे की  मुझे  अब  ज़रूरत  नहीं
शरबती-चश्म  से  मय पिलाने  लगे

ऐ ख़ुदा  उनसे फ़ौरन  मिला दे मुझे
‘भान’ इक पल भी, जैसे ज़माने लगे

— उदय भान पाण्डेय ‘भान’

उदय भान पाण्डेय

मुख्य अभियंता (से.नि.) उप्र पावर का० मूल निवासी: जनपद-आज़मगढ़ ,उ०प्र० संप्रति: विरामखण्ड, गोमतीनगर में प्रवास शिक्षा: बी.एस.सी.(इंजि.),१९७०, बीएचयू अभिरुचि:संगीत, गीत-ग़ज़ल लेखन, अनेक साहित्यिक, सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव

One thought on “ नज़्म

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर नज़्म

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