मोची
मैंने देखा,
चौराहे के एक छोर पर,
अपने छोटे -छोटे औज़ारों के बीच,
चेहरे पर शान्तिः का भाव लिये,
एकटक लोगों को देख रहा है।
लोग आते हैं।
उसके सामने उठा के पैर रख देते हैं।
वह व्यक्ति बिना कुछ सोचे,
पैर में लगे जूते को उतारता है।
अपने कार्य में जुट जाता है
अपने पथ से नहीं होता बिचलित।
बहुत ही प्रेम से देखता है,
उस दो जोड़ी जूते को।
उसे अपार खुशियाँ मिलती है।
क्यों कि –
गंदेले जगहों से होते हुए,
वह जूता आया है,
उसके पास।
नव जीवन पाने के लिए।
वह मोची लगन से देता है।
उसे चलने की एक नयी जिन्दगी।
उसे उसकी कीमत मिलती है।
कुछ मौद्रिक रुपईया के रुप में,
उसका परिवार जिस पर टिका हुआ है ।
अपना ध्यान केन्द्रित करता है,
अपने महत्वपूर्ण कार्य की ओर।
देख नहीं पाता लोगों के चेहरे को,
देखता है सिर्फ दो जोड़ी जूते को।
लालायित आँखों से,
कब आ जाये मेरे पास,
निभाने के लिए साथ,
यही लगाये बैठा है चौराहे पर आश।
किसी का चेहरा देखने के लिए,
उसे फुर्सत कहां।
वो अपने कर्मों के प्रति कर्मनिष्ठ है।
रोटी के भूख को मिटाने के लिए।
मैं देखा चौराहे के एक छोर पे
वह चुप चाप बैठा था।
— रमेश कुमार सिंह
सच ही तो है मोची एक योगी की तरह ध्यानमग्न बस अपना कर्म करता जाता है | सुंदर रचना |
सुंदर लेखन