जिन्दगी और रेलगाड़ी !
जिन्दगी और
रेलगाड़ी…
दोनों एक जैसी हैं |
कभी तेज तो कभी
धीमी गति से
लेकिन चलती है |
पैसेंजर ट्रेन…
स्टेशन पर रुक जाती है
और देर तक रुकी रहती है |
जिन्दगी के कुछ लम्हे
ऐसे भी होते है
जिसमे आकर
जिन्दगी रुक जाती है |
लाख कोशिश करे
जिन्दगी आगे नहीं बढती
लगता है तब
आखरी स्टेशन आ गया है |
जिन्दगी में न जाने
कितनों से मिले,
किन्तु कुछ ही की यादें
यादों में बस गए,
कुछ की यादें
पैसेंजर की भांति
यादों से उतर गए |
रेलगाड़ी और जिन्दगी में
एक ही अंतर है,
गाड़ी आखरी स्टेशन से
लौटकर पहले के
स्टेशन में आ जाती है,
किन्तु जिन्दगी की गाडी
लौटकर कभी भी
बचपन में नहीं आती है |
© कालीपद ‘प्रसाद’
बेजोड़ तुलना
उम्दा रचना
धन्यवाद आ विभारानी जी !
कालीपद परसाद जी ,कवित बहुत अच्छी लगी ,यह जिंदगी की कडवी सच्चाई है कि जिंदगी की गाडी पहले की जगह नहीं आती .
धन्यवाद आ गुरमेल सिंह भम्ररा जी !