लघुकथा : मालामाल
पागल, निकम्मा कह कर जिसे घर वालो ने घर से निकाल बाहर दर – दर भटकने को मजबूर किया, उसी ने अपने माता – पिता को तब सहारा दिया जब उसके बड़े भाई ने उन दोनों को भी फालतू समझ कर वृद्धा आश्रम में भेजना चाहा |
वह अपने साथ ले गया अपने माता – पिता को और बोला भाई को, ” मै आज मालामाल हूँ ,और आप आज कंगाल हैं.”
वाह .
छोटी सी कहानी से बड़ा सन्देश.
शान्ति बहन , छोटी सी मिनी कहानी में आप ने बहुत कुछ कह दिया . यह इंसान की बदकिस्मती ही कह सकते हैं कि कभी कभी जिस को हम निक्कमा कह कर दुत्कार देते हैं वोही कठिनाई में आप का साथ डे देता है और जिस पर हम भरोसा करके बैठे रहते हैं वोही दगा डे जाता है . बहुत अच्छी कहानी .
धन्यवाद, भाई साहब.
बढ़िया !
धन्यवाद.