कविता

‘ममता की छाँव’

ममता की छाँव भुला देती है सरे दुःख, 
माँ की सेवा में है जीवन का सारा सुख,
 
माता  की सेवा इस जग में सर्वोपरि है,  
माता की सेवा में ही ईश्वर की छवि है,
 
लहलहाते खेत सा हराभरा माँ का आँचल है,
अन्नपूर्णा है जग की, सृष्टि की संचालक है,
 
तीनो लोको का सुख माँ के चरणों में मिलता है, 
गृह उपवन का हर फूल माँ की कृपा से खिलता है,
 
देवी रूप है साक्षात् , तमस में दिया और बाती  है,
​    ​

वीरो की जननी है,  फिर भी अबला कहलाती है, 

 
खतरा  कैसा भी आये, माँ के सिमरन से कट जाता है,
​    ​

रेखाए किस्मत की बदल जाती हैं, हर काम बन जाता है,

 
​——​ जय प्रकाश भाटिया 

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845

2 thoughts on “‘ममता की छाँव’

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    भाटीया जी कविता अच्छी है , माँ शब्द ही ऐसा है कि चाहे इंसान कितना भी बूडा हो जाए मरते दम तक माँ याद आती रहती है .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता. मां की ममता का कोई विकल्प नहीं.

Comments are closed.