कविता

आँखें…

चाहे जितना छुपाओ, दिल का हर राज खोल देतीं है
बडी ही बातूनीं हैं आपकी आँखें हर बात बोल देती हैं॥

कह देती है पूरी की पूरी गजल, एक इशारे में।
एक ईशारे में, कई जाम का नशा घोल देती हैं॥
बडी ही बातूनीं हैं आपकी आँखें, हर बात बोल देती हैं…..

हया से झुकती, है तो हजार अफसाने बना देती है।
अदा से उठती है, तो बहारों के झरोखे खोल देतीं हैं॥
बडी ही बातूनीं हैं आपकी आँखें, हर बात बोल देती हैं…..

बिना बोलें ही, अपना बना लेने का हुनर क्या कहूं।
देखकर जब भी पलटती है, धडकनों को झोल देतीं हैं॥
बडी ही बातूनीं हैं आपकी आँखें, हर बात बोल देती हैं…..

थोडा रहम खाओ, काजल के डोरे से बांध लो ।
जब भी देखतीं हैं, दिलों में कसक बेतौल देती है….
चाहे जितना छुपाओ, दिल का हर राज खोल देतीं है
बडी ही बातूनीं हैं आपकी आँखें हर बात बोल देती हैं॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

2 thoughts on “आँखें…

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

    • सतीश बंसल

      बहुत शुक्रिया बिजय जी…

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