शब्दों के नव-अंकुर
कलम का मुह खुलते ही,
स्वर्णाच्छर पन्नों पर उग जाते हैं।
उन्हीं अक्षरों के निकलते ही,
शब्दों के नव अंकुर फूट पड़ते हैं।
हृदय में भाव उमड़ते ही,
मानसिक पटल पर विचार आने लगता है।
लेखनी के रास्ते पर चलकर ही,
शब्दों के नव अंकुर पन्नों पर,
आकर ठहर जाता है।
शब्दों के नव अंकुरण से ही,
नवाचार लिख दिया जाता है।
वाक्य एवं पंक्तियां का शुभारंभ करके ही,
गद्य एवं पद्य बना दिया जाता है।
@रमेश कुमार सिंह /१७-०८२०१५
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