विवशता
निष्पर्यंत,
वेदना को सहते हुए,
निशा में विस्तर पर करवटें,
बदलते हुए।
निस्तल,
निष्कर्ष पर पहुंचते हुए।
निस्तरंग निस्सहाय निस्सार,
इच्छा लिए,
अंधेरी रातों को गुजारता हूँ।
एक-एक-पल,
तफरीहन,
तरस पड़ता है।
किसी में निमज्जन तब,
जबकि-
दिवाकर अपने प्रकाशित प्रकाश को,
समेटकर गदहवेला को पार,
कर जाता है,
उसी वक्त –
तप्तायनी नजर आने लगती है।
मेरी विवशता ही,
मुझे मजबूर कर देती है,
तड़पने के लिए!!!!!
@रमेश कुमार सिंह /२२-०८-२०१५
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शब्दार्थ –
निष्पर्यंत=असीम
निस्तरंग=शान्त एवं स्थिर
निस्तल=अन्तहीन
निस्सार=सारहीन
तफरीहन=हँसीं दिल्लगी के लिए
निमज्जन=लिनहोना
तप्तायनी=दू:ख का लोक