कविता

मेहर

मेरे शौहर, तलाक बोल कर
आज आपने मुझे तलाक दे दिया !

अपने शौहर होने का ये धर्म भी
आज आपने पूरा कर दिया !

आज आप कह रहे हो की,
मैंने तुम्हे तलाक दिया है,
अपनी मेहर को लेकर चले जा….
इस घर से निकल जा….

लेकिन उन बरसो का क्या मोल है ;
जो मेरे थे, लेकिन मैंने आपके नाम कर दिए…
उसे क्या आप इस मेहर से तोल पाओंगे….

जो मैंने आपके साथ दिन गुजारे,
उन दिनों में जो मोहब्बत मैंने आपसे की
उन दिनों की मोहब्बत का क्या मोल है…

और वो जो आपके मुश्किलों में
हर पल मैं आपके साथ थी,
उस अहसास का क्या मोल है..

और ज़िन्दगी के हर सुख दुःख में ;
मैं आपका हमसाया बनी,
उस सफर का क्या मोल है…

आज आप कह रहे हो की,
मैंने तुम्हे तलाक दिया है,
अपनी मेहर को लेकर चले जा….

मेरी मेहर के साथ,
मेरी जवानी,
मेरी मोहब्बत
मेरे अहसास,
क्या इन्हे भी लौटा सकोंगे आप ?

One thought on “मेहर

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सवाल के जबाब कौन दे सकता है

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