कविता

इंतजार 

मेरी ज़िन्दगी के दश्त,
बड़े वीराने है
दर्द की तन्हाईयाँ,
उगती है
मेरी शाखों पर नर्म लबों की जगह…….!!
तेरे ख्यालों के साये
उल्टे लटके,
मुझे क़त्ल करतें है ;
हर सुबह और हर शाम…….!!

किसी दरवेश का श्राप हूँ मैं !!

अक्सर शफ़क शाम के
सन्नाटों में यादों के दिये ;
जला लेती हूँ मैं…

लम्हा लम्हा साँस लेती हूँ मैं
किसी अपने के तस्सवुर में जीती हूँ मैं..

सदियां गुजर गयी है…
मेरे ख्वाब,मेरे ख्याल न बन सके…
जिस्म के अहसास,बुत बन कर रह गये.
रूह की आवाज न बन सके…

मैं मरीजे- उल्फत बन गई हूँ
वीरानों की खामोशियों में ;
किसी साये की आहट का इन्तजार है…

एक आखरी आस उठी है ;
मन में दफअतन आज….
कोई भटका हुआ मुसाफिर ही आ जाये….
मेरी दरख्तों को थाम ले….

अल्लाह का रहम हो
तो मैं भी किसी की नज़र बनूँ
अल्लाह का रहम हो
तो मैं भी किसी की “हीर” बनूँ…