गज़ल
अँधेरे जहां के भगाओ जरा
दिया प्यार का तुम जलाओ जरा
दवा जान के खा गए हम ज़हर
जो अब रूठी साँसे मनाओ जरा
नहीं जी सके भूल कर हम कभी
कहा हमने कब है बताओ जरा
लहू पी रही आज इंसान का
ये दीवार अब तो ढहाओ जरा
रहा है कहाँ धर्म ईमां यहाँ
जहां खूबसूरत सजाओ जरा
चमन को उजाड़े क्यों है ये हवा
सुधारो इसे अब हटाओ जरा
चरागों से लौ जा रही ए हवा
बढ़ा हाथ तुम रोक आओ जरा
anita manda