कविता

कविता : सूखा पत्ता

सूखा पत्ता हूँ मैं  डाल का
कभी बेदर्दी से रौंदा जाता पैरों तले
कभी धूल में मिलाती आती- जाती गाड़ियाँ
कभी कोई ठोकर मारता खेल- खेल में
हुआ क्या डाल से जुदा होकर
खो गया मेरा वजूद ही मेरा
था कभी हरा भरा मुस्कुराता पत्तों के झुरमुट में
कभी हवा दुलारती
कभी सूरज की किरणें सहलाती
कभी पंछियों का कलरव गुदगुदाता
कितनी शान से मैं ऊपर से
देखता था में धरती की ओर
और आज पड़ा निढ़ाल धरा  पर
देखता हूँ बेबस  आसमां की ओर
और सोचता ……
क्यों हो गयी जुदा मुझ से खुशियाँ मेरी
और मिला मेरा वजूद धूल में
शायद जीवन का यही नियम है
मुस्कुराने की कीमत
उसके खोने के बाद ही पता चलती है
और जीवन का सबक भी वक्त ही सिखाता है  ||

— मीनाक्षी सुकुमारन

मीनाक्षी सुकुमारन

नाम : श्रीमती मीनाक्षी सुकुमारन जन्मतिथि : 18 सितंबर पता : डी 214 रेल नगर प्लाट न . 1 सेक्टर 50 नॉएडा ( यू.पी) शिक्षा : एम ए ( अंग्रेज़ी) & एम ए (हिन्दी) मेरे बारे में : मुझे कविता लिखना व् पुराने गीत ,ग़ज़ल सुनना बेहद पसंद है | विभिन्न अख़बारों में व् विशेष रूप से राष्टीय सहारा ,sunday मेल में निरंतर लेख, साक्षात्कार आदि समय समय पर प्रकशित होते रहे हैं और आकाशवाणी (युववाणी ) पर भी सक्रिय रूप से अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत करते रहे हैं | हाल ही में प्रकाशित काव्य संग्रहों .....”अपने - अपने सपने , “अपना – अपना आसमान “ “अपनी –अपनी धरती “ व् “ निर्झरिका “ में कवितायेँ प्रकाशित | अखण्ड भारत पत्रिका : रानी लक्ष्मीबाई विशेषांक में भी कविता प्रकाशित| कनाडा से प्रकाशित इ मेल पत्रिका में भी कवितायेँ प्रकाशित | हाल ही में भाषा सहोदरी द्वारा "साँझा काव्य संग्रह" में भी कवितायेँ प्रकाशित |

One thought on “कविता : सूखा पत्ता

  • शशि शर्मा 'ख़ुशी'

    bahut sundar kavita,,, ek seekh ke saath 🙂

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