सामाजिक

गम्भीरता से सोचिए ! क्या नारी उपहास की पात्र है ?

मेरे अनेक मित्र और वाट्सअप को आपसी संवाद का बेहतरीन माध्यम मानने वाले पुरुष और महिला दोनों ही, पत्नी या गर्ल फ्रेण्ड पर जोक्स जमकर शेयर कर उनका मजाक बनाने को हास – परिहास का सरल, सहज, निर्दोष और निरापद तरीका मानते हैं I वे यह नहीं जानते कि ये मजाक अनजाने में ही समाज को, देश को, सामाजिक ताने बाने को कितना अपूरणीय नुक्सान पहुंचाने वाले हैं I इन जोक्स को पढ़ने वाले किशोरों के कोमल मन मस्तिष्क में पत्नी और नारी की एक ऐसी छवि का निर्माण हो जाता है, जो मूर्ख है, स्वार्थी है, लालची है, पुरुष की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता और सोच समझ को खा जाने वाली राक्षसी है, यूज एंड थ्रो की चीज है I मनोविज्ञान के अनुसार यह सन्देश उसके अवचेतन मस्तिष्क में बालिपुत्र अंगद के पैर की तरह स्थापित होने लगता है I

यूज एंड थ्रो के इस फंडे का विस्तार देखना हो तो अमेरिका के हालात पर नजर डालिए I वहां पत्नी को कुछ दिनों के लिए मायके भेजने की मजाकिया ख्वाहिश का ऐसा विस्तार हुआ है कि तलाक वहां के वैवाहिक जीवन का पहला संस्कार बन बैठा है I साथ ही वहां हर साल दस लाख कुंवारी किशोरियां मां बन जाती है और उनकी पिता विहीन संतानें अपराध की दुनिया के चमकते सितारे बनने को विवश हो जाती है I भारत में आज भी अभावों के बावजूद गरीबों की संतानें भी मां (जो पत्नी भी है) के कारण देशभर की श्रेष्ठ प्रतिभा के रूप में उभरती हैं I बीमारी या विपरीत परिस्थितियों में पत्नी द्वारा की गई तीमारदारी को याद कर के तो देखिए I इन दिनों अमेरिका के सामाजिक संगठन, समाजशास्त्रियों के समूह, मनोवैज्ञानिक और प्रशासन भी वैवाहिक जीवन को सुदीर्घ और पारिवारिक ढ़ांचे को सशक्त बनाने के लिए विविध आयामी कोशिशें कर रहा है I

यह कदापि मत भूलिए कि विवाह के बाद वह अपनी मां में उस मूर्ख, स्वार्थी, पराधीनता की प्रतीक और यूज एंड थ्रो की वस्तु यानी नारी को खोजेगा, जिसे हमने जोक्स के माध्यम से उसके अवचेतन में स्थापित किया है I जोक्स को केवल क्षणिक असरकारी मानने की भूल मत कीजिए I जैसे हमने सिखों के बलिदान को भूलाकर उन्हें उपहास का विषय बनाया है और उनके बलिदान को पूरीतरह भूला दिया है I यदि नारी की अनुपम क्षमताओं, त्याग, समर्पण, ममता, वात्सल्य, अनुराग, प्रेम, सेवाभावना, पारिवारिक उत्थान में अतुलनीय योगदान आदि विशेषताओं को कूड़ेदान में नहीं डालना चाहते हैं, तो उसे कृपा करके मजाक का पात्र मत बनाइएं I

यह मत भूलिए कि जोक्स में अन्तर्निहित शब्द किशोरियों के मनमस्तिष्क को भी नाना प्रकार से प्रभावित करते हैं I एक तो यह कि वह शोषित है, उपेक्षित है, आत्महीन है, अपमानित है, तिरस्कार के योग्य है, भोग की वस्तु है, त्याज्य है, व्यक्तित्व और अस्तित्वहीन है आदि I सम्बन्धित नारी के मस्तिष्क की परिपक्वता और देश, काल तथा परिस्थितियों के अनुसार उसका मानस अपनी स्वयं की छवि गढ़ता है I उसे आत्महीन या आक्रामक बना सकता है I

याद रखिए, विज्ञान के अनुसार शब्द ऊर्जा ही है, वे सर्वदा मौजूद रहते हैं I नष्ट नहीं होते हैं I क्योंकि विज्ञान कहता है कि ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती है, परिवर्तित अवश्य हो सकती है I ऐसे जोक्स शेयर करने से पूर्व स्वयं ही चिन्तन मनन करें, यह भी कल्पना कीजिए कि क्या पत्नी के बिना स्त्री-पुरुष की पूरकता सम्भव है ?

एक बात यह भी कि नारी विरोध के इस अभियान में सहयोग कर कहीं आप समलैंगिकता के लिए वातावरण बनाने में तो परोक्ष रूप से सहयोग तो नहीं कर रहे हैं ? इस गहन गम्भीर विषय पर बहुत लिखा जा सकता है, परन्तु फ़िलहाल बस इतना ही I

— डॉ. मनोहर भण्डारी