गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

रोज लिखते रहे और मिटाते रहे
ज़िन्दगी हम तुझे गुनगुनाते रहे
मूँद ली आँख अपनी तो ऐसा लगा
बीती बातों को हम भुल जाते रहे
मुस्कुराते हुए आँख नम यूँ हुई
क्योंकि पीड़ा हृदय में दबाते रहे
ओढ़ ली एक चादर खामोशी भरी
ज़ख्म सारे उसी में छुपाते रहे

— वत्सला पांडेय