ग़ज़ल
सबके मन की गांठें खोले साल नया
बिखरे रिश्तों को फिर जोड़े साल नया
भूखे को दे रोटी, निर्धन को धन दे
सबकी खाली झोली भर दे साल नया
ग़म से आहत दिल डूबा है आशा में
शायद थोड़ी खुशियाँ लाए साल नया
नभ में कदम बढ़ाता वो सूरज ही है
निकल पड़ा है या मुस्काए साल नया
मधु-प्याला निःशुल्क मिलेगा मालिक से
कहता ‘हरिया’ जल्दी आए साल नया
जीवन का हर क्षण हो जाए सुरभित “जय”
बीज नए पुष्पों के बोए साल नया
बहुत अच्छी ग़ज़ल .