कविता

अपेक्षाएँ

उसे अपेक्षाएँ हैं मुझसे
कुछ कहने, कुछ सुनने की
साथ में सपने बुनने की
पर है कितनी सच्ची ?
प्रश्न मुंह बाए खड़ा है।

सफलताओं-असफलताओं के मापदंड पर
खुद को खंगालते हुए जाना
कितना कुछ छूट गया
अपेक्षाओं के अंतहीन जंगल में

उम्र के इस मोड़ पर,
मुझे ही रुसवा करेगीं ,मेरी अपेक्षाएँ
कोई भ्रम पालने से अच्छा है
चुपचाप चलते रहना।

महिमा श्री

महिमा श्री

नाम :-महिमाश्री शिक्षा :- एम.सी.ए , पटना, बिहार लेखन विधाएँ :- अतुकांत कविताएँ, ग़ज़ल, दोहें, कहानी, यात्रा- वृतांत, सामाजिक विषयों पर आलेख , समीक्षा साहित्यिक गतिविघियाँ- एकल काव्य संग्रह- “अकुलाहटें मेरे मन की” साझा काव्य संकलन “त्रिसुन्गंधी” , “परों को खोलते हुए-१”, “ सारांश समय का” , “काव्य सुगंध -2”, देश के विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित, मासिक ई- पत्रिका शब्द व्यंजना में संपादन तथा अंतर्जाल और गोष्ठीयों में साहित्य सक्रियता। सम्प्रति :पब्लिक सेक्टर में सात साल काम करने के बाद (मार्च २००७-अगस्त २०१४) वर्तमान में स्वतंत्र लेखन, पत्रकारिता , नई दिल्ली मोबाइल :- 9910225441 ईमेल:- [email protected] Blogs:www.mahimashree.blogspots.com