अपेक्षाएँ
उसे अपेक्षाएँ हैं मुझसे
कुछ कहने, कुछ सुनने की
साथ में सपने बुनने की
पर है कितनी सच्ची ?
प्रश्न मुंह बाए खड़ा है।
सफलताओं-असफलताओं के मापदंड पर
खुद को खंगालते हुए जाना
कितना कुछ छूट गया
अपेक्षाओं के अंतहीन जंगल में
उम्र के इस मोड़ पर,
मुझे ही रुसवा करेगीं ,मेरी अपेक्षाएँ
कोई भ्रम पालने से अच्छा है
चुपचाप चलते रहना।
— महिमा श्री