कविता

दो कवितायेँ

1

चल रहे थे हम अकेले
मिल गया कोई अचानक
राह के सुने चमन में
खिल गया कोई अचानक

मौन जीवन स्वर बना है
स्वर से अब गीत बनेगा
कल तक था जो
मात्र परिचय सा
अब वो मेरा मीत बनेगा

शून्य बने अधरों पे मेरे
थिरक गया कोई अचानक
शांत पड़े लहरों में जैसे
हलचल लाया कोई अचानक

2

अगन से तेज अनुभव तेरा
तू अरुणोदय की लाली
जल से पतला ज्ञान तेरा
मैं नीर क्षीर की प्याली

तू भ्रम है या वास्तव तू
इस लोक का नहीं तू
मई विस्मित हूँ….

प्रगति मिश्रा 'सधु'

नाम - प्रगति मिश्रा 'सधु' जन्म - 30 अक्टूबर 1982 शिक्षा - स्नातकोत्तर रूचि - अध्ययन-अध्यापन,काव्यसृजन सम्प्रति - शिक्षिका