गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

पठानकोट के शहीदों के नाम, मेरा कलाम,
उनकी शहादत को सलाम :

अगर हवा थी, चिनगारी थी, आग़ लगाने वालों में,
तो  कुछ  सूखे पत्ते  भी  थे,  बाग़  जलाने वालों में।

हरे – भरे कुछ पेड़  जल गये  गद्दारों की साज़िश में,
नाम  लिया  जाएगा  जिनका  बाग़  बचाने वालों में।

आग़ की लपटें क्या समझेंगी वो ज़ज़्बा, जो होता है,
आग़ज़नी   के    मनसूबे   नाकाम   बनाने   वालों में।

धन्य हैं  अपने  वीर पुरुष जो  हर दम  आगे  रहते हैं,
मासूमों  की,   मज़लूमों   की   जान  बचाने   वालों में।

देश, धर्म  और शर्म से  बढ़ कर जिनको पैसा होता है,
‘होश’, वही  हैं  देश  का अपने  मान  घटाने  वालों में।





 

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।

One thought on “ग़ज़ल

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अछे .

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