काजल के बहाने
बहुत बार संवारा इसे मगर
मेरी अंख़ियों से काजल बह-बह जाए
चले आओ वहीं से लौट कर
कि मेरा काजल आँखों में ठहर जाए
बार-बार यह बिगड़ जाता है
गालों पर क्यूँ पसर जाता है भला
उंगलियों से मेरी झगड़ जाता है
चले आओ कि काजल मंहगा हो चला
चलो काजल की फिकर नहीं
लोगों के तानों की तो कर लो
तुम्हारी प्रिया को सब काली कहेंगे
कि लौट आओ, फिर गोरा कर दो
अपने लिए तो लौट आओ
कि तुम्हें भी कहाँ आदत है
कुछ कहते नहीं, अकड़ते हो
ये तो केवल तुम्हारी शरारत है।
— नीतू सिंह
बहुत बार संवारा इसे मगर
मेरी अंख़ियों से काजल बह-बह जाए
चले आओ वहीं से लौट कर
कि मेरा काजल आँखों में ठहर जाए
वाह लाजवाब पंक्तियां। आदरणीया!!
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बहुत बहुत शुक्रिया जनाब
बहुत खूब .
धन्यवाद
बहुत खूब .