गीतिका : कलम
खुद के लिखे पर मत इतना इतरा
दूसरों की वाहवाही से भी मत कतरा
सब अपने आप में हैं अनूठे ,निराले
कहाँ किसी को किसी से है खतरा
लगता है नज़र लग गई लेखनी को
सोचा कलम को लूँ अब तो मतरा
सुना है हिम्मत वालों की कभी हार नहीं होती
इसलिए मैदाने जंग में हूँ उतरा…..
— दिनेश दवे
बढ़िया !
धन्यवाद बहुत बहुत