~~~~आप के साथ~~~~
हूँ मुस्कुराती आज भी बेपनाह, उसकी यादों और बातों के साथ
छोड़ दी उम्मीद उसकी आने की, जी लूंगी उसकी यादों के साथ ।
खुश हूँ ये जानकर कि तूने कभी, अपना हमदम तो माना था
अफ़सोस महसूस नही कर पाती, तुझे कभी अपने आप के साथ ।
नहीं करती इंतजार उस सुखद पल का, जो सुख से ज्यादा पीड़ा दे जाता है
क्यूँ कि आज भी मुस्कुराती हूँ, अपने अकेलेपन और नीरसता के साथ ।
ख़्वाबों में आ दस्तक दे जाते हो, बिन बुलाये मेहमान की तरह
होते हो करीब पर महसूस नही करती तेरी मौजूदगी भी अपने साथ ।
वो भी क्या वक़्त था, “गुंजन” की हर सांस में बसते थे तुम
मै तो वही हूँ और रहूंगी वैसी ही, तुम बदल गए जमाने के साथ ।
aa Gurmel Singh ji bahut bahut dhnywad mera hausla afjaayi karne ke liye tahe dil se aabhaari hu …/..
vijay bhai ji aap ka kehna saty hai ye rachna maine kisi niyam ke tahat nhi likhi hai…maafi chahungi …aapne phir bhi meri rachna ko pasand kiya aabhari hu …/….
shukriya Madan Mohan ji ……margdarshan ke liye aabhari hu __/__
सुन्दर भाव अभिवयक्ति है आपकी इस रचना में लेकिन क्षमा सहित कहूँगा कि शिल्पगत बहुत सी कमियाँ भी है इस रचना में ,माफ़ी चाहूँगा कृपया अन्यथा ना लें… सादर वन्दे…
गुंजन जी, हालाँकि यह रचना ग़ज़लों के नियमों के अनुसार नहीं है, फिर भी बहुत पसंद आई, क्योंकि इसमें सीधे-सरल शब्दों में बहुत गहरे भाव व्यक्त किये गए हैं.
गुंजन जी , पड़ कर मज़ा आ गिया . हर लफ्ज़ मोती की तरह हैं . एक बात जो मुझे भाति है वोह है आसान हिंदी जिस को समझना मेरे जैसे इंसान के लिए आसान है , आगे भी इंतज़ार रहेगा .