कविता : पंछी
विचरण करता हो जो पंछी ,
उन्मुक्त खुले आसमाँ में
रहना पिजड़े में हर वक्त
उसको कब भाता है
पर जिसे मैं कहता हूँ दोस्त
वो रहता नही है कभी अकेला
अपना ही मुझको लगता है
दिल पिंजड़े में ही रहता है
असीम प्यार ,नेह देता है मुझे
जीवन का आधार लगता
करबद्ध प्रार्थना जीवन दाता से
हर बार उससे ही मुझे मिलाना
— डॉ मधु त्रिवेदी