ग़ज़ल
बड़ा ही बेवफा था वो कभी हासिल नहीं होता
जो मुझसे राब्ता होता, मेरा कातिल नहीं होता
वफ़ा की आँच में तपकर इरादा खुदकुशी का है
चलो डूबें वहाँ जाकर, जहाँ साहिल नहीं होता
नशा मुझको सनम का है, ये माना के दिवाने हैं
तेरे दीदार को तरसे, के तू हासिल नहीं होता
हमें भाता है चुप रहना निगाहों से ही कहते हैं
बहुत बढ़ चढ़ के कहने से कोई काबिल नहीं होता
तमन्ना चाँदनी की थी, मिलीं रातें अमावस की
जो जीवन में अमावस हो, तो कुछ हासिल नहीं होता
— रेनू मिश्रा
वाह वाह ! बहुत शानदार ग़ज़ल !!
सुंदर गज़ल