लघुकथा- तीर्थयात्रा
हरिद्वार जाने वाली गाड़ी दिल्ली पहुंची थी कि फोन घनघना उठा, “हेल्लो भैया !”
“हाँ हाँ ! क्या कहा ? भाभी की तबियत ख़राब ही गई. ज्यादा सीरियस है. आप चिंता न करें.” कहते हुए रमन फोन काट कर अपनी पत्नी की ओर मुड़ा, “ सीमा ! हमें अगले स्टेशन पर उतरना पड़ेगा.”
“ क्यों जी ? हम तो तीर्थयात्रा पर जा रहे हैं. फिर वापस घर लौटना पड़ेगा ?” सीमा का वर्षों पूर्व संजौया सपना पूरा हो रहा था, “ कहते हैं कि तीर्थयात्रा बीच में नहीं छोड़ना चाहिए. अपशगुन होता है.”
“ कॉम ओन सीमा ! कहाँ पुराने अंधविश्वास ले कर बैठ गई,” सीमा के पति ने कहा, “ कहते हैं कि बड़ों की सेवा से बढ़ कर कोई तीर्थ नहीं होता हैं ”
यह सुन कर सीमा सपनों की दुनिया से बाहर आ गई और रेल के बर्थ पर बैठे-बैठे बुजुर्ग दंपत्ति के हाथ यह देख-सुनकर आशीर्वाद के लिए उठ गए.
आज भी ऐसे सच्चे इंसान मिल जाते हैं. बहुत बढ़िया.
आदरणीय लीला तिवानी जी आभार आप का
आप की उपस्थिति व अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए.
अच्छी और प्रेरक लघुकथा.
आदरणीय विजय कुमार जी आप को लघुकथा पसंद आई, मेरी मेहनत सफल हो गई. शुक्रिया आप का.